Thursday, 18 February 2016

OSHO WORLD THE BEGGINING

प्रश्न:- क्या आप परमात्मा को मुझ तक लाने में समर्थ हैं?

ओशो:- मेरा लेना—देना क्या? तुम हो, तुम्हारा परमात्मा है, तुम्हारी खोज है। अगर मेरे कारण तुम्हें थोड़ा सहारा मिल जाए तो बस, काफी है। उसके लिए तुम्हें अनुगृहीत होना चाहिए।

इधर तुम मुझे चुनौती दे रहे हो कि जैसे यह भी काम मेरा है। जैसे कि अगर परमात्मा तुम तक न आया तो कसूर मेरा होगा। जैसे पकड़ा मैं जाऊँगा कि तुम तक परमात्मा क्यों नहीं आया?

तुमने गुलाम होने के कितने रास्ते खोजे हैं! तुम गुलामी छोड़ते ही नहीं। कभी धन की गुलामी, कभी पद की गुलामी, अगर वहाँ से तुम बचते हो तो गुरु की गुलामी।

गुलामी का मतलब यह होता है, कोई और करे; तुम किसी और पर निर्भर हो। तुम भिखमंगे रहने की जिद क्यों
किए बैठे हो?

परमात्मा ने चाहा है कि तुम सम्राट होओ।

मैं तुम्हें कुछ इशारे दे सकता हूँ, खोज तो तुम्हें ही करनी होगी।

इसका यह अर्थ नहीं कि मैं परमात्मा को तुम तक लाने में समर्थ नहीं हूँ।

अगर मैं अपने तक ले आया तो तुम तक लाने में क्या अड़चन है? कोई अड़चन नहीं है सिवाय तुम्हारे।

मैं सदा ही तुम्हारे सामने परमात्मा की भेंट लिए खड़ा हूँ। जरा द्वार—दरवाजे खोलो, जरा देखो तो सही मैं तुम्हारे लिए क्या ले आया हूँ?

मैं तुम्हारे सामने लिए खड़ा हूँ, और तुम पूछते हो कि क्या आप समर्थ हैं? बड़े मजे की बात रही।

तुम्हारे पास दृष्टि ही नहीं है; लोभ है, दृष्टि नहीं है। पाना चाहते हो, लेकिन पाना चाहने की कोई तैयारी नहीं है।

और परमात्मा को लाना थोड़े ही पड़ता है, आया ही हुआ है।

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